स्वरुप पुरी / सुनील पाल
मानसून सीजन की दस्तक के साथ ही राज्य मे हरेला की तैयारियां शुरू हो चुकी है। राज्य सरकार के माध्यम से वन महकमा प्रदेश के विभिन्न वन प्रभागों मे स्थित हर रेंजो मे बड़े पैमाने पर वृक्षरोपण करता है। इस वर्ष भी सभी तैयारियां पूरी है, मगर सवाल है की बीते वर्षो मे प्रदेश भर मे जो लाखो की संख्या मे पौधे रोपित किए गए थे उनकी स्थिति क्या है। जिस हिसाब से करोड़ो रूपये खर्च कर हर वर्ष “हरेला पर्व” मनाया जाता है, उस हिसाब से तो हर जगह नए जंगल खड़े हो जाने चाहिए थे। मगर सवाल गंभीर है, आखिर सरकार ज़ब खर्च करने मे पीछे नहीं है, तो बचाने वाले जिम्मेदार कहां है।
रोपे गए पौधो को बचाने की कौन लेगा जिम्मेदारी, सरकार के प्रयासों को कौन लगा रहा पलिता
फोटो खींचाऊ और सेल्फी पर्व बना हरेला
राज्य सरकार हर वर्ष वन व पर्यावरण को बचाने के लिए करोड़ो खर्च करती है। वन महकमे के साथ ही विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व स्वम सेवी संघठन भी इस दौरान बेहद सक्रिय रहते है। बड़े बड़े कार्यक्रम कर लाखो की संख्या मे पौधे रोपित किए जाते है। फोटो सेशन करवा कर अपनी उपलब्धियों को जन जन तक पहुँचाया जाता है। मगर विडंबना देखो, जिस पर्यावरण व वृक्षारोपण को लेकर वन महकमा, एनजीओ या पर्यावरण प्रेमी पौधेरोपण के दौरान बड़ी बड़ी बाते हाँकते है, वही पौधे कुछ समय बाद दम तोड़ देते है। मगर जिम्मेदारो को इसकी परवाह कहां। अगले वर्ष फिर बजट आएगा, फिर पौधे रोपे जाएंगे ओर तो ओर “एक पेड़ माँ के नाम ” की फोटो सोशल मीडिया मे अपडेट कर देंगे, मगर…. क्या यह सिलसिला जारी रहेगा यह बड़ा सवाल है।