स्वरूप पुरी/सुनील पाल
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार शपथ ली थी तो भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने की पहल शुरू हुई थी। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आज भारत दुनिया मे अपना परचम तो लहरा रहा है, मगर देश मे मौजूद सरकारी महकमे प्रधानमंत्री की इस मुहिम को बट्टा लगाने में जुटे हुए है। विकास को लेकर बनाई गई योजनाएं धरातल तक पँहुचते ही दम तोड़ती नजर आ रही है।
वर्ष 2000 में गठित उत्तराखंड राज्य भी इससे अछूता नही रहा है। यंहा कई विभाग ऐसे है जो कमीशनखोरी की कारगुजारियों के चलते विकास में बाधा बन रहे है। ऐसे ही कुछ महकमे है जिनमे एक बड़े सुधार की जरूरत है। उत्तराखंड राज्य आज वन व पर्यावरण के लिए देश भर में ऑक्सीजन डिपो के रूप में जाना जाता है। पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन के साथ राज्य का वन महकमा कई योजनाएं संचालित करता है। इन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए करोड़ो रुपयों का बजट गढ़वाल व कुमाऊँ में मौजूद विभिन्न वन प्रभागों व टाइगर रिजर्वो को दिया जाता है । मगर इस बजट को लेकर होने वाली कमीशनखोरी इन योजनाओं पर पलीता लगा रही ही। वन प्रभागों व टाइगर रिजर्वो के माध्यम से रेंज स्तर पर आवंटित होने वाले बजट पर गिद्धों की तरह सबकी नजर रहती है। विकास योजनाओं के लिए आवंटित इस पैसे पर मुख्यालय बाबुओं , उच्च अफसर से लेकर फील्ड तक कार्य करने वाले मुलाजीमो का कमीशन बंटा रहता है। सबसे बड़ा सवाल है कि ऐसा क्यों। क्या सरकार इन्हें वेतन नही देती। इन परिस्थितियों में कैसे यह राज्य विकास करेगा यह बड़ा सवाल है। हर कार्य मे बजट के हिसाब से पद के अनुसार सभी का परसेंट नियत रहता है। आखिर ऐसा कब तक चलेगा। इस कमीशन खोरी के चलते जो भी कार्य किये जाते है वो निम्न मानकों के तहत पूरे होते है। क्या इसी के लिए इस राज्य का गठन हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित देश के सपनो को कमीशन खोर पलीता लगाते रहेंगे। मगर आखिर कब तक।
सरकार के जीरो टॉलरेंस की मुहिम को बट्टा लगा रहे बागड़बिल्ले, कॉर्बेट व चकराता के प्रकरण ने महकमे की साख गिराई
राज्य में सरकार द्वारा जीरो टॉलरेंस को लेकर कठोर नीति तैयार की गई है। मगर कमीशन खोर बागड़बिल्लो ने इस नीति को भी पलीता लगा दिया है। हाल ही में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व व चकराता में जो हुआ उसने देश भर में सुर्खियां बटोरी। इसको लेकर कुछ महा भृष्ट अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही कर राज्य सरकार ने बेहतर मुहिम शुरू की है। मगर इसके साथ ही कमीशन खोरी पर जीवित रहने वाली छोटी मछलियों को भी कार्यवाही के दायरे में लाना होगा। वन्ही जब कोई ईमानदार अफसर किसी कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही के प्रयास करता है तो बड़े अधिकारी कुछ कार्यवाही नही करते। वे मामले की लीपापोती में लगे रहते है । आखिर ऐसा कौन सा ख़ौफ़ है जो कार्यवाही के नाम पर इनकी कलम की स्याही सूख जाती है।
वन संरक्षण पर कम, कमीशन के कामो पर ज्यादा ध्यान देते है वन कर्मी
वर्तमान में राज्य के विभिन्न वन प्रभागों के इर्द गिर्द बढ़ती आबादी एक बड़ा संकट बन सामने आई है। अधिकतर लोगों की वनों पर निर्भरता का फायदा वन कर्मी उठाते है। वन कानूनों के पालन कि शपथ लेने वाला जवान चंद पैसों की खातिर वन संरक्षण की धज्जियां उड़ा देता है। यही वजह है कि आज वन क्षेत्रों से सटे जंगलों मे खुलेआम दोहन हो रहा है। अंदर से खोखले हो चुके जंगलों में कैसे वन्यजीव संरक्षण व संवर्धन होगा यह एक बड़ा सवाल है। आखिर विकास की राह में बढ़ रहे इस राज्य में इन अधिकारियों, कर्मचारियों की यह कारगुजारिया बड़ी बाधा बन कर सामने आ रही है। जिस तरह राज्य सरकार ने कुछ लोगो के खिलाफ कारवाही करी है, ऐसी ही कारवाही इन छोटी मछलियों पर भी करनी होगी, तभी देश का यह ऑक्सिजन डिपो फल फूल पायेगा।