स्वरुप पुरी /सुनील पाल
अपने बाघो के लिए विख्यात राजाजी टाइगर रिजर्व इन दिनों गन्दगी के ढेर से पटा हुआ है। मामला हाल मे खत्म हुई काँवड़ यात्रा से जुडा हुआ है। बीते पंद्रह दिनों मे आस्था की आड़ मे जंगलो का जम कर दोहन हुआ। सबसे ज्यादा बुरा हाल राजाजी की गोहरी रेंज मे देखने को मिला। यहाँ हर वर्ष लाखो की संख्या मे शिवभक्त चुनरीगाड बीट से गुजर रहे पैदल मार्ग से नीलकंठ महादेव की ओर जाते है। आते जाते सैकड़ो टन कूड़ा ये फैला जाते है।
वहीं जगह जगह लगने वाले बड़े बड़े भंडारो के चलते स्थिति ओर भी विकट हो जाती है, उनके द्वारा छोड़ी गई गंदगी वन्यजीव संरक्षण व संवर्धन को चुनौती देती है। यह कोरिडोर बाघो व जंगली गजराजो व कई संरक्षित प्राणियों का प्रमुख विचरण केंद्र है। मगर मौक़े पर तैनात वन कर्मी व वन्यजीव करें भी तो क्या करें। मौका आस्था से जुडा है, बड़े रूआवदार अफसर भी आँख मूंद कर बैठे है।
भंडारे व अवैध दुकाने बन रही संकट, कारवाही करते ही नेता व चमचे बनते है बाधा, आला अफसरों की बंध जाती है घिघी
यू तो सावन की शिवरात्रि के साथ भारी भीड़ कम हो चुकी है। मगर सावन अभी बाकी है, शिवभक्त अभी भी आ रहे है। साल के अन्य दिनों मे कोई जंगल मे घुस जाए, तो देहरादून मे बैठे आला हाकीमो की चूल हिल जाती है। अंग्रेजी मे गिटर-पिटर कर रेंजर व अन्य वनकर्मियों को कारवाही की तलवार दिखा दी जाती। आला हाकीमो के फरमान के बाद कड़ी मेहनत से महकमे की कुर्सी पाए महानुभाव जी सर, यस सर कर कार्यवाही का आदेश जारी कर देते है। मगर तब उन्हें नियमो की याद नहीं आती कानून तो कानून है। वन्यजीव अधिनियम मे क्या कांवड़ के दौरान नियमों के उल्लंघन की छूट है। आखिर क्यू इतने संवेदनशील छेत्रो मे भंडारो व अवैध दुकानों की अनुमति दी जाती है। क्या एनटीसीए की आँखों पर भी आस्था का पर्दा पड़ जाता है।
हाल ही मे लच्छीवाला मे घटी घटना से सबक लेंने की जरुरत है। बहरहाल पंद्रह दिनों तक दिन रात ड्यूटी बजाने वाले बेचारे, निरीह वन कर्मी अब टनो कचरा साफ करने मे जुटे है। कचरे के कारण बीमारी का डर अलग से सता रहा है। मगर क्या जंगलो मे भण्डारो की अनुमति देने वाले, सो कॉल्ड वेल एजुकेटेड अफसर या काँवड़ के अवसर पर नेतागिरी करने वाले इसे साफ करने को आएंगे यह सवाल बना हुआ है। जागो एन टी सी ए जागो, कब तक नींद मे सोये रहोगे. परमिशन देने वाले बागड़ बिल्लो पर कारवाही करो, इन्हे सबक सिखाओ कारवाही नहीं करी, तो वो दिन दूर नहीं, ज़ब यह जंगल वीरान हो जाएंगे, आस्था के नाम पर जम कर तांडव होगा, वन्यजीव कॉरिडोर समाप्त हो जाएंगे। तब लोग वन महकमे के अस्तित्व पर ही सवाल उठाएंगे।