स्वरुप पुरी / सुनील पाल
उत्तराखण्ड राज्य अपने बेशकीमती जंगलो के लिए देश भर में विख्यात है। ऑक्सीजन डिपो के रूप में विख्यात इस राज्य के जंगलो में अब कटान माफिया पूरी तरह सक्रिय हो चुके है। हर रोज कहीं न कहीं पेड़ो के अवैध कटान की खबरें आती रहती है। आखिर ऐसे कौन से कारण है जो कटान माफिया पेड़ो पर आरी चला देते है, और वन महकमा बाद में कागजी कार्यवाही तक ही सिमित रहता है। एक के बाद एक घटित हो रहे प्रकरणों के चलते आज हालत विकट हो चुके है। क्या ये सिस्टम की लापरवाही है या फिर कटान माफियाओ द्वारा बाटी जा रही चांदी, यह जांच का विषय है। अभी भी वक़्त रहते चेतने की जरूरत है नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब आबादी से सटे जंगलो व गली मोहल्लो की हरियाली देखने को ही न मिले।
जंगलती खाकी पर सवाल, कैसे चल रही है पेड़ो पर आरी
राज्य में किसी भी डिवीजन के किसी भी छेत्र में अवैध तरीके से पेड़ो का कटान होता है तो मौके पे तैनात जंगलाती खाकी के जवान सक्रिय हो जाते है। जुर्म काटने की कार्यवाही अमल में लायी जाने लगती है… भाई जनता अब तुम्हारे जुर्म काटने से लेकर कटान माफियाओ को बचाने के तौर तरीके सब समझ चुकी है। कटान माफियों से गठजोड़ इतना गहरा है की पेड़ भी कट जाए ओर मुजरिम भी बच जाए। सवाल यह की जब पेड़ कटे तब इनका सूचना तंत्र क्यों निष्क्रिय होता है। शिकायत के बाद ही सिस्टम क्यों जागता है। तो ज़नाब ऐसा नहीं है जो हम सोच रहे है किसी भी पेड़ को काटने की प्रक्रिया व ऊपरी खर्चा बहुत ज्यादा होता है। निचले स्तर पर तैनात खाकी धारी से मिल बाग़ व पेड़ो पर आरी चला दी जाती है। हल्ला हुआ तो निचले स्तर से जुर्म काट दिया जाता है। जुर्माना ऊंट के मुँह में जीरे के बराबर लगाया जाता है और साथ में मेहनताना अलग से। पेड़ काटने वाला मौज में, मौक़े पर तैनात बागड़ बिल्ला व उसके ऊपरी सरपरस्त भी मौज में। कागजो में जुर्म काटा, का जवाब भी तैयार, मगर सबसे बड़ा सवाल है की आखिर कब तक, ऐसा ही हाल रहा तो आबादी छेत्रो में हरियाली क्या नजर आएगी।
अधिकारी जानते है सब कुछ, क्या इन्हे भी मिलती है मलाई. कितनो को जेल भेजा या ससपेंड किया,बना सवाल?
हर बार ज़ब भी बाग़ व पेड़ कटता है, तो कार्यवाही की बात होती है, मगर लापरवाही पर कितने बागड़ बिल्लो पर कार्यवाही करी /ससपेंड करा इस पर मौन राहते है। भाई सरकार किस बात की तनख्वाह दे रही है। सब जानते है की हर विभागीय कार्य में कमिसन तय होता है, अरे विभागीय कार्य में माल कमाओ मगर राज्य का तो नाश न करो। तुम्हारी ढील व कमिसन खोरी के चलते आज निचले स्तर के बागड़ बिल्ले सिंघम बन सिस्टम को तार तार कर रहे है। यही वजह है की जगह जगह आरटीआई एक्टिविस्ट सक्रिय हो चुके है तो वहीं एक्टिविस्टो को चंदा भेंट करने के किस्से भी चर्चा में है। तो जरा संभलो, सरकार मोटा वेतन दे रही है तुम्हे, मोदीजी की राशन लाइन में नहीं लगेंगे तुम्हारे बच्चे, राज्य के जंगल बचाओ, नहीं तो एक दिन तुम्हारी आत्मा धिक्कारे तुम्हे, यें मैंने क्या किया








