चीला -मोतीचूर कोरिडोर में बाधा बन रहे खंडहर, कोरिडोर के लिए विस्थापित हुए थे कई परिवार

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    स्वरुप पुरी /सुनील पाल 

    राजाजी टाइगर रिजर्व में कई कॉरिडोर ऐसे है जो आज भी जीवंत है। इन कॉरिडोर से जंगली गजराज व अन्य वन्यजीव निर्बाध आवागमन कर एक क्षेत्र से दूसरे में क्षेत्र प्रवेश करते है। वहीं राजाजी के बीच से गुजर रही गंगा की धारा के चलते पार्क पूर्वी व पश्चिमी भाग में बंटा हुआ है। मगर इसके बावजूद भी इस क्षेत्र में तीन कॉरिडोर ऐसे है जो आज भी सक्रिय है। पार्क के पश्चिमी क्षेत्र के मोतीचूर रेंज में मौजूद तीन पानी कोरिडोर, मोतीचूर -सत्यनारायण -गोहरी कॉरिडोर व मोतीचूर -चीला कॉरिडोर आज भी वन्यजीव संरक्षण व संवर्धन में अहम भूमिका निभा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आबादी से घिरे मोतीचूर चीला कॉरिडोर सीमा पर मौजूद खांड गॉव के कुछ परिवारो को विस्थापित भी किया गया था, मगर आधे अधूरे कार्य आज भी राजाजी टाइगर रिजर्व के इस महत्वपूर्ण कोरोडोर के लिए दंश के समान है।

    विस्थापित किए गए लोगो के मकान बने खंडहर, वन्यजीवो के निर्बाध अवगमन में बन रहे संकट 

    चीला-मोतीचूर कॉरिडोर अपनी प्राकृतिक खूबसूरती व वन्यजीवो के नियमित गमन मार्ग के रूप में विख्यात है। प्रोजेक्ट एलिफैंट की सफलता में इन कॉरिडोर की प्रमुख भूमिका रही है। इन कॉरिडोर से वर्षा, शरद व ग्रीस्म ऋतू में गजराजो के झुण्ड पश्चिम व पूर्वी क्षेत्रों में आते जाते है। कुछ वर्ष पूर्व इस कॉरिडोर में आ रहे कुछ परिवारो को यहां से विस्थापित करने के साथ ही करोड़ो की लागत से हरिद्वार -देहरादून हाइवे पर फ्लाइओवर का निर्माण भी किया गया था। मगर कई वर्ष बीत जाने के बाद भी राजाजी टाइगर रिजर्व द्वारा विस्थापित किए गए लोगो मकान डिस्पोज नहीं किए गए है। एक ओर जहां ये खंडहर कॉरिडोर में बाधा बन रहे है, तो वहीं असमाजिक तत्वों व शिकारियों की दृस्टि से भी ये अतिसंवेदनशील भी बने हुए है। क्या राज्य वन महकमा व राजाजी प्रसाशन इसकी सुध लेगा, यह बड़ा सवाल है।

    “खांड गांव 3 को विस्थापित कर दिया गया था, वहां खाली पड़े मकानों के बारे मे दिखवाया जायेगा की वह प्रॉपर्टी हैंडओवर हुई है या नहीं, उसी के बाद कारवाही की जाएगी।”

    को को रोजे, निदेशक राजाजी टाइगर रिजर्व।

     

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