स्वरूप पुरी/सुनील पाल
राज्य के वन क्षेत्र अब एक नए तरीके के संकट से गुजर रहे है। प्रदेश में मौजूद कई वन प्रभागो व टाइगर रिजर्वो में पालतू पशुओं के नियमित घुसपैठ, व लकड़ी चुगान करने वाले तस्करों ने यंहा के जंगलों की सूरत ही बदल दी है। राज्य का वन महकमा भले ही वन्य जीव संरक्षण को लेकर जितने दावे करे, मगर धरातल की हकीकत सारे दावों की पोल खोल देती है। यह हाल हर क्षेत्र का है। वनकर्मियों की नाकामी के चलते आज बाघों के संरक्षण व एलिफैंट प्रोजेक्ट पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए है।
मैदानों में है सबसे ज्यादा बुरा हाल
मैदानो की बात करे तो सबसे ज्यादा बुरा हाल राजाजी टाइगर रिजर्व में देखने को मिलता है। कई रेंजे ऐसी है जंहा नियमित तरीके से वन गुज्जरों की भैंसे व लकड़ी चुगान करने वाले जंगलों में भीतर तक सेंधमारी करते रहते है। अब सबसे बड़ा सवाल है कि इन पर कार्यवाही क्यो नही की जाती। राजाजी टाइगर रिजर्व में एक ओर बाघों के ट्रांसलोकेसन को लेकर महत्वपूर्ण कार्य किये जा रहे है तो वन्ही दूसरी ओर चीला गोहरी का क्षेत्र बाघों के गढ़ के रूप में स्थापित हो चुका है। मगर अब यंहा पर भी बाघों के संरक्षण पर सकंट नजर आने लगा है। यंहा के प्रमुख बीन नदी क्षेत्र से हर रोज सैकड़ो की संख्या में वन गुज्जरों की भैंसे कोर क्षेत्र में चरने को जाती है। आखिर ऐसा क्यों। कौन है जिसकी सरपरस्ती में बाघों के क्षेत्र में सेंधमारी करवाई जाती है। या फिर ऐसा कौन सा नियम है जो केवल इन्हें ही जंगलों के भीतर जाने दिया जाता है।
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व इसी क्षेत्र में एक बाघ की संदिग्ध मौत ने पार्क महकमे की जम कर किरकिरी करवाई थी। वन्ही इस प्रकरण पर जब ही हल्ला होता है तो इनके केस काटे जाते है, मगर जुर्माना इतना कम होता है जो कई सवाल पैदा करता है। आखिर क्यों नही कड़ाई से वन कानूनों का अमल करवाया जाता है। पार्क की अन्य रेन्जो में भी ऐसे ही हालात है। आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा। अब भी अगर अधिकारी नींद से नही जागे तो वो दिन दूर नही जब इस क्षेत्र में मानव वन्यजीव संघर्ष के साथ बाघों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो जाएगा।