स्वरूप पुरी/सुनील पाल
देश के ऑक्सिजन डिपो के रूप में विख्यात उत्तराखंड के जंगल ,क्या रात के सन्नाटे में महफूज है। क्या वन्यजीव संरक्षण को लेकर किये जाने वाले दावे ,रात को भी भी नजर आते है। अगर हकीकत देखनी हो तो रात के सन्नाटे में वनों का रुख करे। राज्य का हर वन प्रभाग व टाइगर रिजर्व,कुछ स्थानों व आपात स्थिति को छोड़कर, आपको वर्दी से लैस पेबिल कर्मियों के बिना नजर आएंगे। आप जंहा से गुजरेंगे वँहा संविदा पे तैनात छुटपुट कर्मी अपनी ड्यूटी बजाते नजर आएंगे। आखिर उन्हें अपने बच्चो को जो पालना है। वन्ही जिन क्षेत्रों में वो तैनात है वँहा के बागड़बिल्लो की नींद व सुखचैन का भी ख्याल रखना है। जी हां यह एक ऐसा सच है जिसके बुते पर राज्य के जंगल बचाए जाने के दावे किए जाते है।
वन्यजीव संरक्षण पर बड़ा संकट, दस से पाँच के ढर्रे पर कार्य कर रहे जिम्मेदार
गौरतलब है कि देश के इस ऑक्सीजन डिपो पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। वन महकमे की हकीकत बयाँ करे तो धरातल पर कहानी नियमित पेट्रोलिंग के दावों के बिल्कुल उलट नजर आती है। राज्य में महज कुछ ईमानदार वनकर्मियों, रेंज अफसरों, व अधिकारियों के अलावा अधिकतर बागड़बिल्ले कुछ घण्टो का ही काम करते है। जब तक अफसर या रेंज अधिकारी सामने होते है ये अपनी ड्यूटी बजाते है। मगर इनके जाते ही ये अपने ठिकाने का रुख कर लेते है।
दैनिक गस्त के नाम पर बागड़बिल्ले करते है खानापूर्ति, खाकी के प्रति भी गैरजिम्मेदारी
वन महकमे में नियमित दैनिक गस्त के नाम पर भी खेल होता है। दैनिक गस्त अब महज् फ़ोटो खींचू अभियान बन कर रह गयी है। मोटा वेतन पाने वाले जिम्मेदार चुनिदा स्पॉट पर जा कर फ़ोटो खींच ,अपने दैनिक जिम्मेदारी की पूर्ति कर लेते है। क्या यही वन्य जीव संरक्षण व संवर्धन कहलाता है। राज्य के अधिकतर वन क्षेत्रों में यही हाल है। आखिर ऐसा क्यो है। आखिर इनके ऊपर बैठे अधिकारी क्यो नही इन पर कार्यवाही करते है। जाहिर सी बात है कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ है। कहीं ऐसा तो नही इनके द्वारा अर्जित मलाई में इनकी भी हिस्सेदारी हो।
आयोग द्वारा चयनित अधिकारियों ने कसा शिकंजा, बागड़बिल्लो में हड़कम्प
वन्ही हाल ही के कुछ वर्षों में आयोग द्वारा चयनित हुए अधिकारियों ने महकमे की सूरत बदलनी शुरू की है। वर्तमान में कई ईमानदार अफसर राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कड़क व ईमानदारी से अपना कार्य कर रहे है। इन अफसरों की मौजूदगी व उनकी कार्यप्रणाली ने मलाई चाटने वाले बागड़बिल्लो कि नाक में दम कर दिया है। मगर मलाइखोर बागड़बिल्ले व उनकी एकता अब भी वन महकमे के लिए संकट बन रही है। ईमानदार अफसर जब इन पर कार्यवाही को उच्चस्तर को लिखते है, तो उच्चस्तर पर कार्यवाही न होना एक बड़ा सवाल बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों। इस मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत इन गैरजिम्मेदार व मलाइखोरो के खिलाफ कठोर कार्यवाही करनी होगी। जब ऐसा होगा तभी इस देश के ऑक्सीजन डिपो को बचाने के साथ ही वन्यजीव संरक्षण व संवर्धन में अहम भूमिका निभाई जा सकेगी।