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इतिहास के पन्नों मे सिमट रहा फिसिंग बंगलो, अंग्रेजो के जमाने मे बने बंगले बन रहे इतिहास

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स्वरुप पुरी /सुनील पाल 

उत्तराखण्ड राज्य जहां अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए विख्यात है तो वहीं इस राज्य मे मौजूद वन देश के लिए ऑक्सीजन डिपो का भी कार्य करते है। आजादी से पूर्व जहां उत्तराखण्ड की धरोहरो का जम कर दोहन किया गया तो वहीं कुछ ऐसे भी निर्माण किए जो आज के दौर मे सम्भव नहीं है। लगभग डेढ़ सौ साल पहले फिरंगियों ने अपनी सुविधा अनुसार पर्वतीय व मैदानी छेत्रो मे अपने ऐशो आराम के लिए कई फारेस्ट रेस्ट हॉउस का निर्माण कराया था। आज भी राज्य के कई वन प्रभागो मे ये बंगले शान से खड़े है। फिरंगियों ने उस दौर मे जो बँगले बनाये वो आज भी कई दास्तांयें अपने मे समेटे हुए है। उत्तराखण्ड राज्य की बात करे तो वन महकमे के लिए ये बँगले आज भी अफसरों, नेताओं व रूआबधारियों के रात्रि विश्राम के रूप मे विख्यात है।

कुमाॉऊ,गढ़वाल या फिर मैदानी वन छेत्र की बात करे तो ये सभी की पसंदीदा सैरगाह या फिर रात्रि ठिकाने के रूप मे सबकी पहली पसंद बने हुए है। मगर वहीं कई वन प्रभागों मे मौजूद कुछ फारेस्ट रेस्ट हाउस बजट के अभाव मे खंडहर बनते जा रहे है।

राजाजी का ऐतिहासिक सत्यनारायण बंगला बन रहा खंडहर, फिसिंग बंगले के रूप मे है विख्यात 

गढ़वाल छेत्र की बात करें तो यहां तीन जिलों मे विभाजित राजाजी टाइगर रिजर्व अपने बंगलो के लिए देश भर मे विख्यात है. पार्क की सभी दस रेंजो मे स्थित बँगले लगभग सौ से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व बने हुए है।

चीला, कुनाउ, मीठावली, धौलखंड, बेरीवाड़ा, मोतीचूर, रामगढ़ हो या फिर हरिद्वार का ललताराव व रानीपुर फारेस्ट रेस्ट हाउस ये अपने आप मे राज्य के लिए एक विरासत है। समय समय पर हो रहे रख रखाव के चलते ये आज तक टिके हुए है। मगर इन सब के बीच एक फारेस्ट रेस्ट हाउस ऐसा भी है जो इतिहास के पन्नों मे सिमटने को तैयार है। मोतीचूर रेंज स्थित सत्यनारायण छेत्र मे मौजूद फिसिंग बंगलो आज खंडहर मे तब्दील हो चूका है। वर्षो से रख रखाव के अभाव व पूर्ववती अफसरों की नजरअंदाजी के चलते यह ऐतिहासिक विरासत अब इतिहास के पन्नों मे सिमटने को तैयार है। सन 1882 मे निर्मित यह फारेस्ट रेस्ट हाउस फिसिंग बंगलो के रूप मे जाना जाता था। इसी कैम्पस मे 1950 मे भी एक और रेस्ट हाउस बनाया गया था। लगभग दो हेक्टेयर से ज्यादा छेत्र मे बना यह एफआरएच सौंग व गंगा की प्रमुख धाराओ से घिरा हुआ है। मगर वर्षो से बजट के अभाव व अधिकारियों की उदासीनता के चलते अब यह खंडहर मे तब्दील हो रहा है। राज्य मे कई ऐसी ऐतिहासिक विरासते है जिन्हे संजोने की जरूरत है, मगर ये कार्य कौन करेगा यह बड़ा सवाल है।

“राजाजी टाइगर रिजर्व मे मौजूद सभी फारेस्ट रेस्ट हाउस हमारी विरासत है, हम इन विरासतो को संजोने का कार्य कर रहे है, सत्यनारायन स्थित एफआरएच एक महत्वपूर्ण बंगला है यह फिशिंग बंगलो के रूप मे विख्यात रहा है, जल्द ही इसके पुनरनिर्माण को लेकर सार्थक प्रयास किए जाएंगे।”

कोको रोसे, निदेशक, राजाजी टाइगर रिजर्व।

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