स्वरूप पूरी/सुनील पाल
राज्य की राजनीति में इन दिनों कुछ माननीयों ने हड़कम्प मचा रखा है। अपने अपने क्षेत्रों में इनकी कार्यप्रणाली अफसरशाही के लिए आफत बन रही है। ऐसा ही एक प्रकरण मंगलवार से चर्चा में बना हुआ है। एक अधिकारी को हटाने को लेकर एक माननीय अपनी सरकार के मंत्री आवास पर ही धरने में बैठ गए। मामला उत्तरकाशी जनपद के पुरोला विधानसभा का है। यंहा से विधायक दुर्गेश्वर लाल गोविंद वन्यजीव पशु विहार की डिप्टी डायरेक्टर की ट्रांसफर की मांग पर अड़े हुए है। इस मांग को लेकर जब माननीय वन मंत्री से मिलने पँहुचे, तो मंत्री ने जांच के आदेश दे दिए। जनहित से जुड़े मुद्दे का हवाला दे तत्काल ट्रांसफर की मांग पर अड़े माननीय मंत्री आवास पर ही धरना दे बैठे।
जनप्रिय, विकास पुरुष, माननीय जनप्रतिनिधियों के आगे लाचार है ईमानदार अफसर, मन की हुई तो ठीक नही तो ट्रांसफर की करते है मांग
राज्य की राजनैतिक दशा इन दिनों बदलती जा रही है। 70 % वन क्षेत्र होने के कारण नियम कानून भी कड़े है। मगर वर्तमान में वनों को बचाना वन महकमे के अफसरों के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आ रही है। कठिन लगन व अथक परिश्रम के बाद कई युवा अफसर , ईमानदार वन कर्मी इन दिनों राज्य के विभिन्न वन प्रभागों व रिजर्वो में तैनात है। मगर इन क्षेत्रों के हालात बद से बदतर होते जा रहे है। राज्य के हर विधानसभा क्षेत्रों में अवैध खनन, अवैध पातन सहित कई मामले है जो लगातार सुर्खियों में बने रहते है। चकराता व कॉर्बेट का प्रकरण तो सभी ने सुना व देखा है। वन अधिकारी जब अपने वन छेत्रो से सटे इलाको, व अन्य कामो को लेकर कड़ा रुख अपनाते है तो माननीय विकास पुरुषों को यह बात कांटे की तरह चुभती है। लेकिन वे शायद भूल जाते है कि कानून सबके लिए बराबर होता है। वनाधिकारी भी नियमो के तहत कार्य करता है। वह भी वन कानून के विपरीत नही जा सकता। मंगलवार को मंत्री आवास पर हुए इस प्रकरण ने एक बार फिर एक नई बहस छेड़ दी। आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में चुने गए माननीयों को भी इस पर गंभीर मंथन करना होगा। तभी सही मायनों में वन कानूनों का पालन के साथ वन्य जीव संरक्षण सम्भव हो सकेगा।