स्वरूप पुरी/सुनील पाल
देश के ऑक्सीजन डिपो के रूप में विख्यात उत्तराखंड राज्य इन दिनों एक नए संकट से गुजर रहा है। एक ओर प्रदेश में सर्द मौसम अपना कहर बरपा रहा है तो वहीं दूसरी ओर वन महकमे का द्वारा जारी एक आदेश ने पहाड़ से लेकर मैदान तक भूचाल ला दिया है।
हाल ही में राज्य वन महकमे के द्वारा विभिन्न वन प्रभागों व टाइगर रिजर्वो में तैनात संविदा कर्मियों को हटाने के एक आदेश ने सभी की नींद हराम कर दी है। वन महकमे द्वारा जारी आदेश में वर्ष 2018 के बाद तैनात किए गए संविदा कर्मियों को हटाने के आदेश दिए गए है।
गौरतलब है कि राज्य वन महकमे के विभिन्न प्रभागों में उपनल, पीआरडी सहीत आउटसोर्स कंपनियों के माध्यम से कई लोग वर्षो से वन महकमे में कार्यरत है। सही मायने में देखे तो राज्य वन महकमे की रीढ़ के रूप में ये लोग यंहा अपनी ऊर्जा व जवानी खपा रहे है। मगर अब इनको हटाने का मामला भले ही कोर्ट में हो मगर जो निर्णय लिया गया है, उससे कई घरों में आफत आना तय है।
24 घण्टे की चाकरी, वेतन महीनों बाद, अफसरों की सोच व कार्यशैली को सलाम
21वी सदी के इस दौर में एक ओर युवाओं के लिए रोजगार मिलने के अवसर जंहा सीमित हुए है तो वन्ही राज्य के ये युवा आज भी अपनी जवानी, परिवार को दूर रख चंद पैसों की खातिर विभिन्न वन प्रभागों में 24 घण्टे वन्यजीव संरक्षण व संवर्धन में जुटे है। मगर उसके बावजूद भी आऊट सोर्स कम्पनियां इन्हें कई माह तक वेतन जारी नही करती। इस दर्द को क्या कोई समझ पायेगा।
उधारी के जीवन व बुझे चूल्हों के बाद भी है जोश बरकरार
एक ओर जहाँ राज्य में तैनात अधिकारियों व स्थायी वन कर्मियों को जंहा समय पर वेतन मिल जाता है तो वन्ही इन संविदाकर्मियों को कई माह तक वेतन की आस में उधारी का जीवन जीना पड़ रहा है। इसके साथ ही 24 घंटे रेंज मुख्यालय से लेकर फील्ड तक इन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोता जाता है। मगर इनके दर्द को शायद ही कोई समझ पायेगा। वर्तमान आदेश के तहत अगर ये हट जाते है तो हालात और भी विकट हो जाएंगे। राज्य में विभिन्न प्रभागों में लगातार अधिकारियों के दौरे होते है। इस दौरान स्थाई कर्मचारियों के निर्देश पर ये युवा व बुजुर्ग संविदाकर्मी ही सरकारी बंगलो के साथ उच्च अधिकारियों के घरों, स्कूलों, व अन्य दैनिक समस्याओं की सारी व्यवस्था संभालते है। साथ ही कई उच्च अधिकारियों के प्रोटोकॉल से सम्बंधित व्यवस्थाओं को निपटाने की जिम्मेदारी भी इन्ही योद्धाओं पर है। अब मामला भले ही न्यायालय में हो, मगर साल के इस अंतिम समय ने जो दर्द इन्हें दिया है, उसे कौन समझेगा। उम्मीद है कि नव वर्ष इनके लिए एक सुखद संदेश ले कर आये। ये अगर नौकरियो में बने रहे, तो सही मायने में वन्यजीव संरक्षण हो पायेगा।